मानव जाति ने अनवरत प्राकृतिक आपदा , जलवायु ,अपने प्रतिद्वंदी जानवर से मुकाबला करते हुए अपने ही अनुभव से बहुत कुछ सीखा । वार्तालाप शुरू किया भाषाएं इजाद की और यहां तक वर्णमालाएं विकसित कर अपने अनुभव को लिपिबद्ध करने का तरीका ढूंढ निकाला।
      आगे की पीढ़ियों उन्ही लिपिबद्ध लेख पढ़ती आगे बढ़ती रही और अपने विकास और संघर्ष से नए अविष्कार कर अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए उत्कीर्ण करते गए। कई हजारों साल की इस यात्रा के बाद मनुष्य ने अपने आप को अन्य जीवों की अपेक्षा खुद को सर्वश्रेष्ठ और सुरक्षित स्थापित किया।
     इसी संकलन की वजह से मानवजाति नित नए आयाम स्थापित करती आगे बढ़ती गई जिसमें सबसे अग्रणी थे भारतीय उपमहाद्वीप के लोग जो दुनियां की सबसे बेहतरीन शिक्षा और संस्कृति को को स्थापित कर चुके थे।
    परिणास्वरूप पूरे विश्व की नजरें भारत पर ही केन्द्रित थी। यही एक शिक्षा का केंद्र था। जहां देश विदेश के हजारों छात्र यहां पर शिक्षा अर्जित करने आते थे।
      चिकित्सा के क्षेत्र में भी चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे ग्रंथ लिखे जा चुके थे। अगर आज के विज्ञान से भारतीय वेदों की तुलना की जाए तो विज्ञान भी इसके आगे कहीं भी नहीं टिक पाएगा। भारत में सर्वे भवंतु सुखिनः की तर्ज पर चलने वाले लोग निवास करते थे। यहां पर सभी का हित देखा जाता था।
     आज के समय में सभी अपनी उन्नति और दूसरों की अवनति की कामना लिए हुए आगे बढ़ रहे हैं जिससे पूरा विश्व विनाश की कगार पर खड़ा है। भले ही सभी लोगों की यह सोच रही हो कि वह तरक्की कर रहे हैं लेकिन यह मात्र एक भरोसा है हकीकत कुछ और है। यह है दुनिया भर में जिस तरह से शास्त्रों का निर्माण हो रहा है तथा बड़े-बड़े हथियारों का अविष्कार हो रहा है उससे तो यही लगता है की पूरी पृथ्वी एक बारूद के ढेर पर पड़ी है। सभी देशों ने पुराणिक शिक्षा और विचारधाराओं को त्याग कर जिस तरह से विनाश की सामग्री बनाई है उससे हमारी तरक्की कदापि नहीं हो सकती क्योंकि हम तरक्की नहीं एक अंधकार में भविष्य की तरफ बढ़ रहे हैं और आने वाला समय पृथ्वी के लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकता है।
      आज भी अगर समय रहते सभी देश मिलकर निशस्त्रीकरण की तरफ बड़े और तरक्की की कोई दूसरी दिशा तय करें इसी में मानव जाति का भला हो सकता है।

Comments